ख़ामोशी
ग़ज़ल
जाने इंसान को क्या हो गया है देखो आज मेरी क़ैफ़ियत को
जुबां खोलना ख़ता हो गया है जुबां तो है पर क़ता हो गया है
कराह बे आवाज़ क्या हुई मेरी सेहत ठीक ही लगेगी तुमको
वो समझे दर्द फ़ना हो गया है तेरा चेहरा अब मेरा हो गया है
पहले तो सभी बोला करते थे अब उनके साथ साथ गाएगा
जाने अब सबको क्या हो गया है मेरा दिल अब रवां हो गया है
हंसना मेरे ज़ात का हिस्सा था सज़ा मिली तो भी हर्ज़ नहीं
मेरी ज़ात को अब क्या हो गया है ख़ामोशी मेरा तर्जुमा हो गया है
चुप रहकर मेरे विचारों का लेखक: पी के श्रीवास्तवा
फर्ज़ ओ कर्ज़ अता हो गया है 18.02.25 Phone: +91 8073147467
जुबां ने ओढ़ ली है ख़ामोशी
वजूद में इक ख़ला हो गया है
कठिन शब्द:
ख़ता= ग़लती, गुनाह; कराह= पीड़ा में निकली आवाज़; फ़ना = मृत्यु, मिटना, लुप्त हो जाना; ज़ात= वजूद, मैं ख़ुद; अता= भुगतान करना, दे देना; वजूद= होना, खुद; ख़ला= कमी; कैफ़ियत= हाल, स्थिति; क़ता= काटना, कट जाना, रवां= स्वीकार्य, हाँ में हाँ मिलाना; हर्ज़= हानि, क्षति; तर्जुमा= पर्याय, अनुवाद



"ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ायदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता"
- जावेद अख़्तर